दशामाता का व्रत चैत्र मास के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति का बुरा समय खत्म हो जाता है और अच्छा समय आने लगता है। और उसके सभी काम बनते चले जाते हैं। लेकिन जब मनुष्य की दशा खराब होती है तो उसके हर कार्य में बाधा आने लगती है। इसीलिए चैत्र मास की दशमी तिथि को दशामाता का व्रत किया जाता है। जिससे व्यक्ति के जीवन में बुरा समय दूर होता है। दशामाता का व्रत 10 दिन तक चलता है इस व्रत की शुरुआत चैत्र माह के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू हो जाती है। और इस व्रत की समाप्ति चैत्र मास के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि को हो जाती है। अगर आप 10 दिन तक पूजा या व्रत नहीं कर सकते हैं। तो सिर्फ दशमी के दिन व्रत रखकर दशामाता की पूजा कर सकते हैं। और इस व्रत में हर दिन दशा माता की कहानी सुनी जाती है
अगर आप चतुर्दशी का व्रत कर रहे हैं तो उस दिन दस कहानियां सुनी जाती हैं। आपको बता दें कि इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है। यह व्रत अपने घर की दशा सुधारने के लिए करते हैं और डोरे का पूजन करने के बाद पूजन स्थल नल दमयंती की कथा सुनी या पढ़ी जाती है। इसके बाद डोरो को गली में बांधते हुए पूजन के पश्चात घरों पर हल्दी और कासे के पेड़ लगाते हैं। और इस व्रत में एक ही प्रकार का अन्य काम मे लाया जाता है। और भोजन में इस दिन नमक नहीं होना चाहिए विशेष रूप से में गेहूं का ही उपयोग किया जाता है। और दशामाता व्रत के दिन घर की साफ-सफाई करके घर के जरूर सब्सक्राइब आपकोबता दें कि यह व्रत किया जाता है और नहींहोता है चलिए अब जानते हैं कि माता केव्रत में क्या-क्या सामग्री की जरूरत होती है तो दोस्तों सबसे जरूरी है माता की फोटोचित्र पीपल के वृक्ष की पूजा करें ओर इसकेलिए लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र रोलीमौली चावल फल हद तक सिंदूर गुड़ ने अवैधरूप से हलवा-पूड़ी आदि का भोग लगा सकतीहैं है और साथी कच्चा सूत यह सफेद धागा लें औरदस्तार करके उसमें 10 कांटे लगा लें औरइसे हल्दी से रंग लें इस धागे को दशा माताकी बेल या दशा माता का डोरा कहते हैं
औरयह डोरा साल भर तक पहना जाता है और जोपिछले साल का डोरा होता है उसे पीपल केनीचे गड्डा करके दबा दें या पीपल के वृक्षमें ही बांध लें और महिलाएं डोरे की पूजाकरके उसे गले में धारण करती हैं फिर इसेपूरे साल कभी नहीं उतारा जाता है और अगलेसाल जबकि पूजा हो तो इसे उतारकर नया धागाकी पूजा करके धारण किया जाता है और अगर आपइस दौरे को सालभर तक गले में नहीं पहनसकती हैं तो आप एक दिन पहनकर इसे किसीडिब्बे में सुरक्षित रख कर अपने पूजा घरया तिजोरी में रख लें है चलिए अब बात करते दशामाता का व्रत हर साल चैत्र मास की कृष्णपक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कपर मनुष्य का बुरा समय दूर हो सकता है तथा दशमाता की कृपा सदैव बनी रहती है। इसके साथ ही घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
दशामाता पूजा विधि
दशामाता व्रत के दिन जो महिला पहली बार पूजा कर रही है तो इस बात का जरूर ध्यान रखे कि इस व्रत को शुरू करने के बाद इसे छोड़ा नही जाता है। बल्कि इस व्रत को आजीवन किया जाता है। मान्यता है कि जो दशा माता का व्रत रख रही है वह महिला सुबह जल्दी उठकर घर की अच्छे से साफ सफाई करके घर के किसी कोने में एक दीवार पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। फिर स्वास्तिक के पास 10 बिंदियां बनाएं। और दशा माता की पूजा के लिए रोली, मौली , सुपारी, चावल, दीप, नैवेद्य, धुप आदि शामिल करें। इसके अलावा व्रती महिलाये सफेद कच्चा धागा लें और उसमे 10 गांठ बना लें फिर उसे हल्दी में रंग लें। और दशामाता की पूजा करने के बाद इस धागे को गले में पहन लें। मान्यता है कि इस धागे को पूरे साल गले से नही उतारना चाहिए। और अगले वर्ष जब भी दशामाता का पूजा करे तब पुराने धागे को उतारकर नया धागा पहन लें। इसके बाद दशमाता की पूजा पूरे विधि विधान से करे।
दशामाता व्रत 2025 डेट टाइम पूजा मुहूर्त
दशामाता का व्रत चैत्र मास के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है एसलिए साल 2025 मे चैत्र मास की दशमी तिथि आरंभ: हो रही है 24 मार्च 2025 को शाम 05:40 बजे और दशमी तिथि समाप्त होगी 25 मार्च 2025 को शाम 05:05 बजे ईसलिए उद्यायतिथि के अनुसार दशमत का व्रत 25 मार्च 2025 दिन सोमवार को रखा जाएगा और पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा 25 मार्च, 2025 को सुबह 06:45 बजे से लेकर 10:15 बजे के बीच रहेगा